दीपावली के दिन व्यापारी वर्ग नए बहीखातों का शुभारम्भ करते हैं । नए बहीखाते लेकर उन्हें शुद्ध जल के छींटे देकर पवित्र कर लें । तदुपरान्त उन्हें लाल वस्त्र बिछाकर तथा उस पर अक्षत एवं पुष्प डालकर स्थापित करें । तदुपरान्त प्रथम पृष्ठ पर स्वस्तिक का चिह्न चंदन अथवा रोली से बनाए ।
अब बहीखाते का रोली , पुष्प आदि से ‘ ॐ श्रीसरस्वत्यै नमः ’ मन्त्र की सहायता से पूजन करें ।
तुला का पूजन : सर्वप्रथम तुला को शुद्ध कर लेना चाहिए । तदुपरान्त उस पर रोली से स्वस्तिक का चिह्न बनाए । तुला पर मौली आदि बॉंध दें तथा‘ ॐ तुलाधिष्ठातृदेवतायै नमः ’ कहते हुए रोली , पुष्प आदि से तुला का पूजन करें ।
आचमन और प्राणायाम
पूजासे पहले पात्रोंको क्रमसे यथास्थान रखकर पूर्व दिशाकी ओर मुख करके आसनपर बैठकर तीन बार आचमन करना चाहिये -
ॐ केशवाय नमः ।
ॐ नारायणाय नमः ।
ॐ माधवाय नमः ।
पवित्री धारण करनेके पश्चात प्राणायाम करे ।
१. प्राणायामका विनियोग -
प्राणायाम करनेके पूर्व उसका विनियोग इस प्रकार पढ़े -
ॐकारस्य ब्रह्मा ऋषिर्दैवी गायत्री छन्दः अग्निः परमात्मा देवता शुक्लो वर्णः सर्वकर्मारम्भे विनियोगः ।
ॐ सप्तव्याह्रतीनां विश्वामित्रजमदग्निभरद्वाजगौतमात्रिवसिष्ठकश्यपा ऋषयो
गायत्र्युष्णिगनुष्टुब्बृहतीपङिक्तत्रिष्तुब्जगत्यश्छन्दांस्य्ग्निवाय्वादित्यबृहसप्तिवरुणेन्द्र्विष्णवो देवता
अनादिष्टप्रायश्चित्ते प्राणायामे विनियोगः ।
ॐ आपो ज्योतिरिति शिरसः प्रजापतिऋषिर्यजुश्छन्दो ब्रह्माग्निवायुसूर्या देवताः प्राणायामे विनियोगः ।
२. प्राणायामके मन्त्र -
फिर आखे बंद कर नीचे लिखे मन्त्रोंका प्रत्येक प्राणायाममें तीन-तीन बार (अथवा पहले एक बारसे ही प्रारम्भ करे, धीरे-धीरे
तीन-तीन बारका अभ्यास बढ़ावे) पाठ करे ।
ॐ भूः ॐ भुवः ॐ स्वः ॐ महः ॐ जनः ॐ तपः ॐ सत्यम् । ॐ तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि ।
धियो यो नः प्रचोदयात् । ॐ आपो ज्योती रसोऽमृतं ब्रह्म भूर्भुवः स्वरोम् ।
प्राणायामकी विधि -
प्राणायामके तीन भेद होते है-
१. पूरक, २. कुम्भक, ३. रेचक ।
१- अंगूठेसे नाकके दाहिने छिद्रको दबाकर बायें छिद्रसे श्वासको धीरे-धीरे खींचनेको 'पूरक प्राणायाम' कहते है । पूरक प्राणायाम
करते समय उपर्युक्त मन्त्रोंका मनसे उच्चारण करते हुए नाभिदेशमें नीलकमलके दलके समान नीलवर्ण चतुर्भुज भगवान
विष्णुका ध्यान करे ।
२. जब सॉंस खींचना रुक जाय, तब अनामिका और कनिष्ठिका अंगुलीसे नाकके बायें छिद्रको भी दबा दे । मन्त्र जपता रहे ।
यह कुम्भक प्राणायाम हुआ । इस अवसरपर ह्रदयमें कमलपर विराजमान लाल वर्णवाले चतुर्मुख ब्रह्माका ध्यान करे ।
३ - अंगूठेको हटाकर दाहिने छिद्रसे श्वासको धीरे-धीरे छोड़नेको रेचक प्राणायाम कहते है । इस समय ललाट में श्वेतवर्ण
शंकरका धयन करना चाहिए । मनसे मन्त्र जपता रहे ।
प्राणायामके बाद आचमन - ( प्रातःकालका विनियोग और मन्त्र )
प्रातःकाल नीचे लिखा विनियोग पढ़कर पृथ्वीपर जल छोड़ दे-
सूर्यश्च मेति नारायण ऋषिः अनुष्टुपछन्दः सूर्यो देवता अपामुपस्पर्शने विनियोगः ।
पश्चात् नीचे लिखे मन्त्रको पढ़कर आचमन करे-
ॐ सूर्यश्च मा मन्युश्च मन्युपतयश्च मन्युकृतेभ्यः पापेभ्यो रक्षन्ताम् ।
यद्रात्र्या पापमकार्षं मनसा वाचा हस्ताभ्यां पद्भ्यामुदरेण शिश्ना रात्रिस्तदवलुम्पतु ।
यत्किञ्ज दुरितं मयि इदमहमापोऽमृतयोनौ सूर्ये ज्योतिषि जुहोमि स्वाहा ॥
इसके बाद बायें हाथमें जल लेकर दाहिने हाथसे अपने ऊपर और पूजासामग्रीपर छिड़कना चाहिये-
ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा ।
यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः ॥
ॐ पुण्डरीकाक्षः पुनातु । ॐ पुण्डरीकाक्षः पुनातु । ॐ पुण्डरीकाक्षः पुनातु ।
तदनन्तर पात्रमें अष्टदल-कमल बनाकर यदि गणेश-अम्बिकाकी मूर्ति न हो तो सुपारीमें मौली लपेटकर अक्षतपर स्थापित कर
देनेके बाद हाथमें अक्षत और पुष्प लेकर स्वस्त्ययन पढ़ना चाहिये ।
फिर तीन बार आचमन करें और उच्चारण करे ।
श्रीगोविन्द को नमस्कार ।
श्री माधव को नमस्कार ।
श्री केशव को नमस्कार ॥
संकल्प
निष्काम संकल्प
ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः श्रीमद्भगवतो महापुरुषस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्य ब्रह्मणोऽह्नि द्वितीयपरार्धे
श्रीश्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वंतरे अष्टाविंशतितमे कलियुगे कलिप्रथमचरने जंबुद्वीपे भारतवर्षे आर्यावर्तैकदेशे....
नगरे/ग्रामे/क्षेत्रे (अविमुक्तवाराणसीक्षेत्रे आनन्दवने महाश्मशाने गौरीमुखे त्रिकण्टकविराजिते).......
वैक्रमाब्दे...संवत्सरे.....मासे....शुक्ल/कृष्णपक्षे... तिथौ....वासरे....प्रात/सायंकाले.....गोत्र....शर्मा/ वर्मा/गुप्तः
अहं ममोपात्तदुरितक्षयद्वारा श्रीपरमेश्वरप्रीत्यर्थं....देवस्य पूजनं करिष्ये ।
सकाम संकल्प
यदि सकाम पूजा करनी हो तो कामना-विशेषका नाम लेना चाहिये- या निम्नलिखित संकल्प करना चाहिये-
.......अहं श्रुतिस्मृतिपुराणोक्तफलप्राप्त्यर्थं मम सकुटुम्बस्य सपरिवारस्य
क्षेमस्थौर्यआयुरारोग्यऐश्वरर्याभिवृद्ध्यर्थमाधिभौतिकाधिदैविकाध्यातिमिकत्रिविधतापशमनार्थं
धर्मार्थकाममोक्षफलप्राप्त्यर्थं नित्यकल्याणलाभाय भगवत्प्रीत्यर्थं..... देवस्य पूजनं करिष्ये ।
अब दाहिने हाथ में अक्षत , पुष्प , चन्दन , जल तथा दक्षिणा लेकर निम्नलिखित संकल्प बोलें ।
संकल्प हिंदी अर्थ -‘
श्रीगणेश जी को नमस्कार । श्री विष्णु जी को नमस्कार । मैं .....( अपने नाम का उच्चारण करें ) जाति .....( आपनी जाति का उच्चारण करें ) गोत्र .....( अपने गोत्र का उच्चारण करें ) आज ब्रह्मा की आयु के द्वितीय परार्द्ध में , श्री श्वेतवाराह कल्प में , वैवस्वत मन्वन्तर में , २८वें कलियुग के प्रथम चरण में , बौद्धावतार में , पृथ्वी लोक के जम्बू द्वीप में , भरत खण्ड नामक भारतवर्ष के .....( अपने क्षेत्र का नाम लें )..... नगर में ( अपने नगर का नाम लें )..... स्थान में ( अपने निवास स्थान का नाम लें ) संवत् २०६७ , कार्तिक मास , कृष्ण पक्ष , अमावस्या तिथि , शुक्रवार को सभी कर्मों की शुद्धि के लिए वेद , स्मृति , पुराणों में कहे गए फलों की प्राप्ति के लिए , धन - धान्य , ऐश्वर्य की प्राप्ति के लिए , अनिष्ट के निवारा तथा अभीष्ट की प्राप्ति के लिए परिवार सहित महालक्ष्मी पूजन निमित्त तथा माँ लक्ष्मी की विशेष अनुकम्पा हेतु गणेश पूजनादि का संकल्प कर रहा हूँ । ’
न्यास
पुरुषसूक्त के द्वारा न्यास विधि
संकल्पके पश्चात् न्यास करे । मन्त्र बोलते हुए दाहिने हाथसे कोष्ठमें निर्दिष्ट अङ्गोका स्पर्श करे ।
अङ्गन्यास
सहस्त्रशीर्षा पुरुषः सहस्त्राक्षः सहस्त्रपात् ।
स भूमि सर्वत स्पृत्वाऽत्यतिष्ठद्दशाङ्गुलम् ॥ (बाया हाथ)
पुरुष एवेद सर्वं यद्भूतं यच्च भाव्यम् ।
उतामृतत्वस्येशानो यदन्नेनातिरोहति ॥ (दाहिना हाथ)
एतावानस्य महिमातो ज्यायॉंश्च पूरुषः ।
पादोऽस्य विश्वा भूतानि त्रिपादस्यामृतं दिवि ॥ (बायॉं पैर)
ॐ त्रिपार्दूर्ध्व उदैत्पुरुषः पादोऽस्येहाभवत्पुनः ।
ततो विष्वङ् व्यक्रामत्साशनानशने अभि ॥ (दाहिना पैर)
ततो विराडजायत विराजो अधि पूरुषः ।
स जातो अत्यरिच्यत पश्चाद्भूमिमथो पुरः ॥ (वाम जानु)
तस्माद्यज्ञात्सर्वहुतः सम्भृतं पृषदाज्यम् ।
पशॅंस्तॉंश्चक्रे वायव्यानारण्या ग्राम्याश्च ये ॥ (दक्षिण जानु)
तस्माद्यज्ञात् सर्वहुत ऋचः सामानि जज्ञिरे ।
छन्दा सि जज्ञिरे तस्माद्यजुस्तस्मादजायत ॥ (वाम कटिभाग)
तस्मादश्वा अजायन्त ये के चोभयादतः ।
गावो ह जज्ञिरे तस्मात्तस्माज्जाता अजावयः ॥ (दक्षिण कटिभाग)
तं यज्ञं बर्हिषि प्रौक्षन् पुरुषं जातमग्रतः ।
तेन देवा अयजन्त साध्या ऋषयश्च ये ॥ (नाभि)
यत्पुरुषं व्यदधुः कतिधा व्यकल्पयन् ।
मुखं किमस्यासीत् किं बाहू किमूरू पादा उच्येते ॥ (ह्रदय)
ब्राह्मणोऽस्य मुखमासीद्बाहू राजन्यः कृतः ।
ऊरू तदस्य यद्वैश्यः पद्भ्या शूद्रो अजायत ॥ (वाम बाहु)
चन्द्रमा मनसोजातश्चक्षोः सूर्यो अजायत ।
श्रोत्राद्वायुश्च प्राणश्च मुखादग्निरजायत ॥ (दक्षिण बाहु)
नाभ्या आसीदन्तरिक्ष शीर्ष्णो द्यौः समवर्तत ।
पद्भ्यां भूमिर्दिशः श्रोत्रात्तथा लोकॉं२ अकल्पयन् ॥ (कण्ठ)
यत्पुरुषेण हविषा देवा यज्ञमतन्वत ।
वसन्तोऽस्यासीदाज्यं ग्रीष्म इध्मः शरद्धविः ॥ (मुख)
सप्तास्यासन् परिधयस्त्रिः सप्त समिधः कृताः ।
देवा यद्यज्ञं तन्वाना अबध्नन् परुषं पशुम् ॥ (ऑंख)
यज्ञेन यज्ञमयजन्त देवास्तानि धर्माणि प्रथमान्यासन् ।
ते ह नाकं महिमानः सचन्त यत्र पूर्वे साध्याः सन्ति देवाः ॥ (मूर्धा)
पञ्चाङ्गन्यास
अद्भ्यः सम्भृतः पृथिव्यै रसाच्च विश्वकर्मणः समवर्तताग्रे ।
तस्य त्वष्टा विदधद्रूपमेति तन्मर्त्यस्य देवत्वमाजानमग्रे ॥ (ह्रदय)
वेदाहमेतं पुरुषं महान्तमादित्यवर्णं तमसः परस्तात् ।
तमेव विदित्वाति मृत्युमेति नान्यः पन्था विद्यतेऽयनाय ॥ (सिर)
प्रजापतिश्चरति गर्भे अन्तरजायमानो बहुधा वि जायते ।
तस्य योनिं परि पश्यन्ति धीरास्तस्मिन् ह तस्थुर्भुवनानि विश्वा ॥ (शिखा)
यो देवेभ्य आतपति यो देवानां पुरोहितः । (कवचाय हुम् दोनो कंधो-
पूर्वो यो देवेभ्यो जातो नमो रुचाय ब्राह्मये ॥ का स्पर्श करे)
रुचं ब्राह्मं जनयन्तो देवा अग्रे तदब्रुवन् ।
यस्त्वैवं ब्राह्मणो विद्यात्तस्य देवा असन् वशे ॥ (अस्त्राय फट्, बायीं हथेलीपर ताली बजाये)
करन्यास
ब्राह्मणोऽस्य मुखमासीद्बाहू राजन्यः कृतः ।
ऊरू तदस्य यद्वैश्यः पद्भया शूद्रो अजायत ॥ अङ्गुष्ठाभ्यां नमः । (दोनो अंगूठोंका स्पर्श करे)
चन्द्रमा मनसो जातश्चक्षोः सूर्यो अजायत ।
श्रोत्राद्वायुश्च प्राणश्च मुखादग्निरजायत ॥ तर्जनीभ्यां नमः । (दोनों तर्जनियोंका)
नाभ्यां आसीदन्तरिक्ष शीर्ष्णो द्यौः समवर्तत ।
पद्भ्यां भूमिर्दिशः श्रोत्रात्तथा लोकॉं२ अकल्पयन् ॥ मध्यमाभ्यां नमः । (दोनो मध्यमाओंका)
यत्पुरुषेण हविषा देवा यज्ञमतन्वत ।
वसन्तोऽस्यासीदाज्यं ग्रीष्म इध्मः शरद्धविः ॥ अनामिकाभ्यां नमः । (दोनो अनामिकाओंका)
सप्तास्यासन् परिधयस्त्रिः सप्त समिधः कृताः ।
देवा यद्यज्ञं तन्वाना अबध्नन् पुरुषं पशुम् ॥ कनिष्ठिकाभ्यां नमः । (दोनो कनिष्ठिकाओंका)
यज्ञेन यज्ञमयजन्त देवास्तानि धर्माणि प्रथमान्यासन् ।
ते ह नाकं महिमानः सचन्त यत्र पूर्वे साध्याः सन्ति देवाः ॥
करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः । (दोनों करतल और करपृष्ठोंका स्पर्श करे)
दीपावली की पूजा - सरस्वती पूजन
दीपावली पर सरस्वती पूजन करने का भी विधान है । इसके लिए लक्ष्मी पूजन करने के पश्चात् निम्नलिखित मन्त्रों से माँ सरस्वती का भी पूजन करना चाहिए । सर्वप्रथम निम्नलिखित मन्त्र से माँ सरस्वती का ध्यान करे ।
या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता ,
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्र्वेतपद्मासना ।
या ब्रह्माच्यूतशंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता ,
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा ॥
हाथ में लिए हुए अक्षतों को माँ सरस्वती के चित्र के समक्ष चढ़ा दें । अब माँ सरस्वती का पूजन निम्नलिखित प्रकार से करे ।
तीन बार जल के छींटे दें और बोलेः पाद्यं , अर्घ्यं , आचमनीयं ।सर्वाङ्गेस्नानं समर्पयामि । माँ सरस्वती पर जल के छीटे दें ।
सर्वाङ्गे पंचामृत स्नानं समर्पयामि । माँ सरस्वती को पंचामृत से स्नान कराएँ ।
पंचामृतस्नानान्ते शुद्धोदक स्नानं समर्पयामि । शुद्ध जल से स्नान कराएँ ।
सुवासितम् इत्रं समर्पयामि । माँ सरस्वती पर मौली चढ़ाएँ ।
आभूषण समर्पयामि । माँ सरस्वती पर आभूषण चढ़ाएँ ।
गन्धं समर्पयामि । माँ सरस्वती पर रोली अथवा लाल चन्दन चढ़ाएँ ।
अक्षतान् समर्पयामि । माँ सरस्वती पर चावल चढ़ाएँ ।
पुष्पमालां समर्पयामि । माँ सरस्वती पर पुष्पमाला चढ़ाएँ ।
कुंकुमं समर्पयामि । माँ सरस्वती पर कुंकुम चढ़ाएँ ।
धूपम् आघ्रापयामि । माँ सरस्वती पर धूप करें ।
दीपक दर्शयामि । माँ सरस्वती को दीपक दिखाएँ ।
नैवेद्यं निवेदयामि । माँ सरस्वती को प्रसाद चढ़ाएँ ।
आचमनं समर्पयामि । माँ सरस्वती पर जल के छीटे दें ।
ताम्बूलं समर्पयामि । माँ सरस्वती पर पान , सुपारी , इलायची आदि चढ़ाएँ ।
ऋतुफलं समर्पयामि । माँ सरस्वती पर ऋतुफल चढ़ाएँ ।
दक्षिणां समर्पयामि । माँ सरस्वती पर नकदी चढ़ाएँ ।
कर्पूरनीराजनं समर्पयामि । माँ सरस्वती की कर्पूर जलाकर आरती करें ।
नमस्कारं समर्पयामि । माँ सरस्वती को नमस्कार करें ।
पूजन के उपरांत हाथ जोड़कर इस प्रकार प्रार्थना करे ।
सरस्वती महाभागे देवि कमललोचने ।
विद्यारूपे विशालाक्षि विद्यां देहि नमोऽस्तुते ।
दीपावली की पूजा - कुबेर पूजन
दीपावली एवं धनत्रयोदशी पर महालक्ष्मी के पूजन के साथ -साथ धनाध्यक्ष कुबेर का पूजन भी किया जाता है । इनके पूजन से घर में स्थायी सम्पत्ति में वृद्धि होती है और धन का अभाव दूर होता है । इनका पूजन इस प्रकार करें ।
सर्वप्रथम निम्नलिखित मन्त्र के साथ इनका आवाहन करे ।
आवाहयामि देव त्वामिहायामि कृपां कुरु ।
कोशं वर्द्धय नित्यं त्वं परिरक्ष सुरेश्वर ॥
अब हाथ में अक्षत लेकर निम्नलिखित मंत्र से कुबेरजी का ध्यान करे ।
मनुजवाह्यविमानवरस्थितं ,
गरुड़रत्ननिभं निधिनायकम् ।
शिवसखं मुकुटादिविभूषितं ,
वरगदे दधतं भज तुन्दिलम् ॥
हाथ में लिए हुए अक्षतों को कुबेरयंत्र , चित्र या विग्रह के समक्ष चढ़ा दें ।
अब कुबेर यंत्र , चित्र या विग्रह का पूजन निम्नलिखित प्रकार से करे ।
तीन बार जल के छीटे दें और बोलेः पाद्यं , अर्घ्यं , आचमनीयं समर्पयामि ।
ॐ वैश्रवणाय नमः , स्थानार्थे जलं समर्पयामि ।
कुबेर यंत्र , चित्र या विग्रह पर जल के छीटें दें ।
ॐ वैश्रवणाय नमः , पंचामृतस्नानार्थे पंचामृतं समर्पयामि ।
कुबेर यंत्र , चित्र या विग्रह को पंचामृत से स्नान कराएँ ।
पंचामृतस्नानान्ते शुद्धोदक स्नानं समर्पयामि ।
कुबेर यंत्र , चित्र या विग्रह को शुद्ध जल से स्नान कराएँ ।
ॐ वैश्रवणाय नमः , सुवासितम् इत्रं समर्पयामि ।
कुबेर यंत्र , चित्र या विग्रह पर इत्र चढ़ाएँ ।
ॐ वैश्रवणाय नमः , वस्त्रं समर्पयामि ।
कुबेर यंत्र , चित्र या विग्रह पर मौली चढ़ाएँ ।
ॐ वैश्रवणाय नमः , गन्धं समर्पयामि ।
कुबेर यंत्र , चित्र या विग्रह पर रोली अथवा लाल चन्दन चढ़ाएँ ।
ॐवैश्रवणाय नमः , अक्षतान् समर्पयामि ।
कुबेर यंत्र , चित्र या विग्रह पर चावल चढ़ाएँ ।
ॐ वैश्रवणाय नमः , पुष्पं समर्पयामि ।
कुबेर यंत्र , चित्र या विग्रह पर पुष्प चढ़ाएँ ।
ॐ वैश्रवणाय नमः , धूपम् आघ्रापयामि ।
कुबेर यंत्र , चित्र या विग्रह पर धूप करें ।
ॐ वैश्रवणाय नमः , दीपकं दर्शयामि ।
कुबेर यंत्र , चित्र या विग्रह को दीपक दिखाएँ ।
ॐ वैश्रवणाय नमः , नैवेद्यं समर्पयामि ।
कुबेर यंत्र , चित्र या विग्रह पर प्रसाद चढ़ाएँ ।
आचमनं समर्पयामि ।
कुबेर यंत्र , चित्र या विग्रह पर जल के छीटे दें ।
ॐ वैश्रवणाय नमः , ऋतुफलं समर्पयामि ।
कुबेर यंत्र , चित्र या विग्रह पर पान , सुपारी , इलायची आदि चढ़ाएँ ।
ॐ वैश्रवणाय नमः , कर्पूरनीराजनं समर्पयामि ।
कर्पूर जलाकर आरती करें ।
ॐ वैश्रवणाय नमः , नमस्कारं समर्पयामि ।
नमस्कार करें ।
अंत में इस मंत्र से हाथ जोड़कर प्रार्थना करेः
धनदाय नमस्तुभ्यं निधिपद्माधिपायं च ।
भगवन् त्वत्प्रसादेन धनधान्यादिसम्पदः ॥
कुबेर पूजन के साथ यदि तिजोरी की भी पूजा की जाए , तो साधक को दोगुना लाभ मिलता है । .
दीपावली की पूजा - एकाक्षी नारियल पूजन
महालक्ष्मी पूजन करने के पश्चात एकाक्षी नारियल का पूजन करना चाहिए । सर्वप्रथम हाथ में अक्षत लेकर निम्नलिखित मन्त्र से एकाक्षी नारियल का ध्यान करें :
द्विजटश्चैकनेत्रस्तु नारिकेलो महीतले ।
चिन्तामणि -सम : प्रोक्तो वांछितार्थप्रदानतः ॥
आधिभूतादि -व्याधीनां रोगादि -भयहारिणीं । विधिवत क्रियते पूजा , सम्पत्ति -सिद्धिदायकम ॥
हाथ में लिए अक्षतों को एकाक्षी नारियल पर चढा दें । अब एकाक्षी नारियल का पूजन निम्न प्रकार से करें :
तीन बार जल के छींटे दें और बोलें : पाद्यं , अर्घ्यं , आचमनीयं समर्पयामि ।
स्नानं समर्पयामि । एकाक्षी नारियल पर जल के छींटे दें ।
पंचामृत स्नानं समर्पयामि । एकाक्षी नारियल पर पंचामृत के छींटे दें ।
पंचामृतस्नानान्ते शुद्धोदक स्नानं समर्पयामि । एकाक्षी नारियल को शुद्ध जल से स्नान कराए ।
सिन्दूरं समर्पयामि । घी मिश्रित सिन्दूर का लेप करें और वर्क चढाए ।
सुवासितं इत्रं समर्पयामि । एकाक्षी नारियल पर इत्र चढाए ।
वस्त्रं समर्पयामि । एकाक्षी नारियल पर मौली चढाए ।
गन्धं समर्पयामि । एकाक्षी नारियल पर रोली अथवा लाल चन्दन चढाए ।
अक्षतान समर्पयामि । एकाक्षी नारियल पर चावल चढाए ।
पुष्पं समर्पयामि । एकाक्षी नारियल पर पुष्प चढाए ।
धूपम आघ्रापयामि । एकाक्षी नारियल पर धूप करें ।
दीपकं दर्शयामि । एकाक्षी नारियल को दीपक दिखाए ।
नैवेद्यं निवेदयामि । एकाक्षी नारियल पर प्रसाद चढाए ।
आचमनं समर्पयामि । एकाक्षी नारियल पर जल के छींटे दें ।
ऋतुफलं समर्पयामि । एकाक्षी नारियल पर ऋतुफल चढाए ।
ताम्बूलं समर्पयामि । एकाक्षी नारियल पर पान , सुपारी , इलायची आदि चढाए ।
दक्षिणां समर्पयामि । एकाक्षी नारियल पर नकदी चढाए ।
कर्पूरनीराजनं समर्पयामि । कर्पूर से आरती करें ।
नमस्कारं समर्पयामि । नमस्कार करें ।
अन्त में निम्नलिखित मन्त्र से हाथ जोडकर प्रार्थना करें :
ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं महालक्ष्मीस्वरुपाय एकाक्षिनारिकेलाय नमः सर्वसिद्धिं कुरु कुरु स्वाहा ॥
कुल मिलाकर दीपावली पर्व से जुड़ी हर धार्मिक व पौराणिक मान्यता और ऐतिहासिक घटना इस पर्व के प्रति जनमानस में अगाध आस्था तथा विश्वास बनाए हुए है। दीपावली न केवल धार्मिक, पौराणिक एवं ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि वैज्ञानिक दृष्टि से भी बड़ी महत्वपूर्ण है। क्योंकि दीपावली पर्व ऐसे समय पर आता है, जब मौसम वर्षा ऋतु से निकलकर शरद ऋतु में प्रवेश करता है। इस समय वातावरण में वर्षा ऋतु में पैदा हुए विषाणु एवं कीटाणु सक्रिय रहते हैं और घर में दुर्गन्ध व गन्दगी भर जाती है।
दीपावली पर घरों व दफ्तरों की साफ-सफाई व रंगाई-पुताई तो इस आस्था एवं विश्वास के साथ की जाती है, ताकि श्री लक्ष्मी जी यहां वास करें। लेकिन, इस आस्था व विश्वास के चलते वर्षा ऋतु से उत्पन्न गन्दगी समाप्त हो जाती है। दीपावली पर दीपों की माला जलाई जाती है। घी व वनस्पति तेल से जलने वाल दीप न केवल वातावरण की दुर्गन्ध को समाप्त सुगन्धित बनाते हैं, बल्कि वातावरण में सक्रिय कीटाणुओं व विषाणुओं को समाप्त करके एकदम स्वच्छ वातावरण का निर्माण करते हैं। कहना न होगा कि दीपावली के दीपों का स्थान बिजली से जलने वाली रंग-बिरंगे बल्बों की लड़ियां कभी नहीं ले सकतीं। इसलिए हमें इस ‘प्रकाश-पर्व’ को पारंपरिक रूप मे ही मनाना चाहिए।
सन्दर्भित पुस्तके .-श्री ललितोपचार पूजा संग्रह /
दीपावली पूजा पद्धति
ग्रहशांति /
नित्यकर्म पूजप्रकाश /
हमने अपना सारा प्रयत्न किया है की दीपावली की मुख्य सारी पूजाए और विधियां अपने लेख में समाहित करे /
गुरु कृपा से ही यह संभव हुआ /
यह लेख और सम्पूर्ण पूजा पद्धति लिखने और संचयन का कार्य किया है -प० श्री मोहन दुबे
प ० श्री अमितोष द्विवेदी